मंत्र छोटा रीत नई आसान हमने पाई है
छोटे छोटे संस्कारों से बात बडी बन जाती है ॥
बाते करने से क्या होता नियमित होना पडता है
नियमित शाखा जाते जाते अनुशासन फिर आता है
अनुशासन ही संस्कारों का पंथ खुला कर देता है ॥
शाखा मे हम ऐसे खेले जिससे प्रेम उमडता हो
कुछ बौद्धिक हो गीत गान हो धर्म ग्यान की चर्चा हो
भगवा ध्वज हो नित्य सामने त्याग भावना पलती है ॥
सुख दुख मे हम साथ रहें परिवार रहे हर संपर्कित
यह समाज मेरा अपना है प्रेम भावना हो अंकित
गुरु-पूजा हो श्रद्धा से विस्तार तपस्या होती है ॥
वीर सुतों के दिव्य तेज से भू पर तारांगण आए
जगत निरामय करने हेतु सेवा-व्रत हम अपनाए
इसी मंत्र से इसी तंत्र से विश्व धर्म जय होती है ॥
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