भगवा लहर लहर लहराए,
त्याग शौर्य संदेश सुनाये ||ध्रु.||
पूर्व दिशासे किरणे फैले
जग को ज्योतिर्मय कर डाले
भगवत ध्वज की दिव्य प्रभा को
हम सब प्रतिदिन शिष नमाए ||१||
अरुणिम स्वर्णिम रंग जमाये
धर्मं भावना सतत जगाये
त्याग तपस्या बंधु भवन
हम सब जीवन में अपनाए ||२||
विश्वगुरु यह भगवत ध्वज है
विश्व में जय का यह प्रतीक है
वैभव के अतिउच्छ शिखरपर
भारत को फिरसे पहुंचाये ||३||
Friday, June 26, 2020
भगवा लहर लहर लहराए,
आर्योंका केसरिया निशान
आर्योंका केसरिया निशान
चढ रहा गगन मे रविसमान ॥धृ॥
जो अस्त नही होता त्रिकाल
जिसकी गति है सदा चाल
प्रस्फुटित भेद कर मेघ जाल
जिसकी प्रचंड ज्वाला कराल
आभा है जिसकी आन बान ॥१॥
इसका जोशीला देख रंग
फडके वीरों के मन विहंग
बिजलीसी डोले अंग अंग
करने को रिपु का मान भंग
मुर्दों मे भी आ जाए जान ॥२॥
मर्हट्टों का रणयज्ञ याग
क्षत्रिय ललनाओं के सुहाग
सिख्खों के उर की तप्त आग
दावानल सी जिसकी उडान ॥३॥
इसकी फडकन मे वेदमंत्र
उपनिषदों के अतिगहन तंत्र
अनमोल योग के शक्ति मंत्र
सिद्धांत दर्शनों मे स्वतन्त्र
मीरा तुलसी की मधुर तान ॥४॥
बस इसी रंग मे रंगे रहे
बस इसी प्रेम में पले रहे
हम इसी लगन में लगे रहे
हम इसके नीचे डटे रहे
यह झुके नही फिर जाए जान ॥५॥
आज तन मन और जीवन
आज तन मन और जीवन
धन सभी कुछ हो समपर्ण
राष्ट्र्हित की साधना में,
हम करें सर्वस्व अपर्ण…।।धृ
त्यागकर हम शेष जीवनकी,
सुसंचित कामनायें
ध्येय के अनुरूप जीवन,
हम सभी अपना बनायें
पूर्ण विकसित शुध्द जीवन-
पुष्प से हो राष्ट्र् अर्चन…।। १
यज्ञ हित हो पूणर् आहुति,
व्यक्तिगत संसार स्वाहा
देश के कल्याण में हो,
अतुल धन भंडार स्वाहा
कर सके विचलित न किंचित
मोहके ये कठिन बंधन…।। २
हो रहा आह्वान तो फिर,
कौन असमंजस हमें है
ऊच्यतर आदशर् पावन
प्राप्त युग युग से हमें है
हम ग्रहण कर लें पुन:
वह त्यागमय परिपूणर् जीवन…।।३
आर्योंका केसरिया निशान
चढ रहा गगन मे रविसमान ॥धृ॥
जो अस्त नही होता त्रिकाल
जिसकी गति है सदा चाल
प्रस्फुटित भेद कर मेघ जाल
जिसकी प्रचंड ज्वाला कराल
आभा है जिसकी आन बान ॥१॥
इसका जोशीला देख रंग
फडके वीरों के मन विहंग
बिजलीसी डोले अंग अंग
करने को रिपु का मान भंग
मुर्दों मे भी आ जाए जान ॥२॥
मर्हट्टों का रणयज्ञ याग
क्षत्रिय ललनाओं के सुहाग
सिख्खों के उर की तप्त आग
दावानल सी जिसकी उडान ॥३॥
इसकी फडकन मे वेदमंत्र
उपनिषदों के अतिगहन तंत्र
अनमोल योग के शक्ति मंत्र
सिद्धांत दर्शनों मे स्वतन्त्र
मीरा तुलसी की मधुर तान ॥४॥
बस इसी रंग मे रंगे रहे
बस इसी प्रेम में पले रहे
हम इसी लगन में लगे रहे
हम इसके नीचे डटे रहे
यह झुके नही फिर जाए जान ॥५॥
भगवा लहर लहर लहराए,
त्याग शौर्य संदेश सुनाये ||ध्रु.||
पूर्व दिशासे किरणे फैले
जग को ज्योतिर्मय कर डाले
भगवत ध्वज की दिव्य प्रभा को
हम सब प्रतिदिन शिष नमाए ||१||
अरुणिम स्वर्णिम रंग जमाये
धर्मं भावना सतत जगाये
त्याग तपस्या बंधु भवन
हम सब जीवन में अपनाए ||२||
विश्वगुरु यह भगवत ध्वज है
विश्व में जय का यह प्रतीक है
वैभव के अतिउच्छ शिखरपर
भारत को फिरसे पहुंचाये ||३||
हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन.. आराधन
तन से, मन से, धन से
तन मन धन जीवन से
हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन.. आराधन
अंतर से, मुख से, कृति से
निश्चल हो निर्मल मति से
श्रद्धा से मस्तक नत से
हम करें राष्ट्र अभिवादन
हम करें राष्ट्र अभिवादन
हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन.. आराधन
अपने हँसते शैशव से
अपने खिलते यौवन से
प्रौढ़ता पूर्ण जीवन से
हम करें राष्ट्र का अर्चन
हम करें राष्ट्र का अर्चन
हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन.. आराधन
अपने अतीत को पढ़कर
अपना इतिहास उलट कर
अपना भवितव्य समझ कर
हम करें राष्ट्र का चिंतन
हम करें राष्ट्र का चिंतन
हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन.. आराधन
है याद हमें युग युग की
जलती अनेक घटनायें,
जो माँ की सेवा पथ पर
आई बन कर विपदायें,
हमने अभिषेक किया था
जननी का अरि षोणित से,
हमने श्रिंगार किया था
माता का अरि-मुंडों से,
हमने ही उसे दिया था
सांस्कृतिक उच्च सिंहासन,
माँ जिस पर बैठी सुख से
करती थी जग का शासन,
अब काल चक्र की गति से
वह टूट गया सिंहासन,
अपना तन मन धन देकर
हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन.. आराधन
तन से, मन से, धन से
तन मन धन जीवन से
हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन.. आराधन
विश्व गुरु तव अर्चना मे
भेट अर्पण क्या करे
जब कि तन मन धन तुम्हारे
और पूजन क्या करे ॥ध्रु॥
प्राची की अरुणिम छटा है
यज्ञ की आभा विभा है
अरुण ज्योतिर्मय ध्वजा है
दीप दर्शन क्या करे ॥१॥
वेद की पावन ऋचा से
आज तक जो राग गून्जे
वन्दना के इन स्वरो मे
तुच्छ वन्दन क्या करे ॥२॥
राम से अवतार आये
कर्ममय जीवन चढाये
अजिर तन तेरा चलाये
और अर्चन क्या करे ॥३॥
पत्र फल और् पुष्प जल से
भावना ले हृदय तल से
प्राण के पल पल विपल से
आज आराधन करे॥४॥
मन समर्पित, तन समर्पित
मन समर्पित, तन समर्पित
और यह जीवन समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती
तुझे कुछ और भी दूं ||
माँ तुम्हारा ॠण बहुत है, मैं अकिंचन
किन्तु इतना कर रहा फिर भी निवेदन
थाल में लाऊँ सजा कर भाल जब भी
कर दया स्वीकार लेना वह समर्पण
गान अर्पित, प्राण अर्पित
रक्त का कण कण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती
तुझे कुछ और भी दूं ||
मांज दो तलवार, लाओ न देरी
बाँध दो कस कर क़मर पर ढाल मेरी
भाल पर मल दो चरण की धूल थोड़ी
शीश पर आशीष की छाया घनेरी
स्वप्न अर्पित, प्रश्न अर्पित
आयु का क्षण क्षण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती
तुझे कुछ और भी दूं ||
तोड़ता हूँ मोह का बन्धन, क्षमा दो
गांव मेरे, द्वार, घर, आंगन क्षमा दो
आज सीधे हाथ में तलवार दे दो
और बायें हाथ में ध्वज को थमा दो
यह सुमन लो, यह चमन लो
नीड़ का त्रण त्रण समर्पित
चाहता हूँ देश की धरती
तुझे कुछ और भी दूं ||
विश्व गुरु तव अर्चना मे
विश्व गुरु तव अर्चना मे
भेट अर्पण क्या करे
जब कि तन मन धन तुम्हारे
और पूजन क्या करे ॥ध्रु॥
प्राची की अरुणिम छटा है
यज्ञ की आभा विभा है
अरुण ज्योतिर्मय ध्वजा है
दीप दर्शन क्या करे ॥१॥
वेद की पावन ऋचा से
आज तक जो राग गून्जे
वन्दना के इन स्वरो मे
तुच्छ वन्दन क्या करे ॥२॥
राम से अवतार आये
कर्ममय जीवन चढाये
अजिर तन तेरा चलाये
और अर्चन क्या करे ॥३॥
पत्र फल और् पुष्प जल से
भावना ले हृदय तल से
प्राण के पल पल विपल से
आज आराधन करे॥४॥
आज हिमालय की चोटी से,
आज हिमालय की चोटी से,
ध्वज भगवा लहराएगा ।
जाग उठा है हिन्दू फिर से,
भारत स्वर्ग बनाएगा ॥ध्रु॥
इस झंडे की महिमा देखो,
रंगत अजब निराली है ।
इस पर तो ईश्वर ने डाली
सूर्योदय की लाली है ।
प्रखर अग्नि में इसकी पड़,
शत्रु स्वाहा हो जाएगा ॥१॥
इस झंडे को चन्द्रगुप्त ने
हिन्दू-कुश पर लहराया ।
मरहटों ने मुग़ल-तख़्त को
चूर-चूर कर दिखलाया ।
मिट्टी में मिल जाएगा
जो इसको अकड़ दिखाएगा ॥२॥
इस झंडे की खातिर देखो
प्राण दिए रानी झांसी ।
हमको भी यह व्रत लेना है,
सूली हो या हो फांसी ।
बच्चा-बच्चा वीर बनेगा,
अपना रक्त बहाएगा ॥