Friday, June 26, 2020

आर्योंका केसरिया निशान

आर्योंका केसरिया निशान
चढ रहा गगन मे रविसमान ॥धृ॥
जो अस्त नही होता त्रिकाल
जिसकी गति है सदा चाल
प्रस्फुटित भेद कर मेघ जाल
जिसकी प्रचंड ज्वाला कराल
आभा है जिसकी आन बान ॥१॥
इसका जोशीला देख रंग
फडके वीरों के मन विहंग
बिजलीसी डोले अंग अंग
करने को रिपु का मान भंग
मुर्दों मे भी आ जाए जान ॥२॥
मर्हट्टों का रणयज्ञ याग
क्षत्रिय ललनाओं के सुहाग
सिख्खों के उर की तप्त आग
दावानल सी जिसकी उडान ॥३॥
इसकी फडकन मे वेदमंत्र
उपनिषदों के अतिगहन तंत्र
अनमोल योग के शक्ति मंत्र
सिद्धांत दर्शनों मे स्वतन्त्र
मीरा तुलसी की मधुर तान ॥४॥
बस इसी रंग मे रंगे रहे
बस इसी प्रेम में पले रहे
हम इसी लगन में लगे रहे
हम इसके नीचे डटे रहे
यह झुके नही फिर जाए जान ॥५॥


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