संघटन गढे चलो सुपंथ पर बढे चलो ।
भला हो जिसमें देश का वो काम सब कीये चलो ॥धृ॥
युग के साथ मिलके सब कदम बढान सीख लो ।
एकता के स्वर में गीत गुनगुनाना सीख लो
भूल कर भी मुख में जाती-पंथ की न बात हो
भाषा प्रांत के लिये कभी न रक्त पात हो
फूट का भरा घडा है फोड कर बढे चलो॥१॥
आरही है आज चारों ओर से यही पुकार
हम करेंगे त्याग मातृभूमी के लिये अपार
कष्ट जो मिलेंगे मुस्कुराते सब सहेंगे हम
देश के लिये सद जियेंगे और् मरेंगे हम
देश का हि भग्य अपन भग्य है ये सोच लो ॥२॥
No comments:
Post a Comment