इधर उधर बिखरे सुमनों से,
की ये गुरुपूजा, की ये गुरुपूजा............।धृ।
यहां खडे है नत मस्तक कर,
श्री प्रताप तपस्वी नरवर, यहां खडे गोविंद गुरुवर,
यहां है केशव शिव सरजा,
की ये गुरुपूजा.......।१।
यहां जले दीपक जीवन के,
गढ़ चितौड की उन युवतीन के,
फूल चले है लाल गुरु के, जिन्होंने मृत्यु सुखद समजा,
की ये गुरुपूजा....।२।
लाकर समिधा निज यौवन की,
आहुति दें सौख्य स्वप्न की,
रखी दक्षिणा तन मन धन की,
क्या तूं दे सकता दे जा,
की ये गुरुपूजा.... ।३।
साक्षी बन इस होम हवन का,
मंत्र सीखा उज्जवल जीवन का,
आ जा राष्ट्र पुरुष आ जा
आ जा राष्ट्र पुरुष आ जा की ये गुरुपूजा......। ४।
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Monday, July 23, 2018
इधर उधर बिखरे सुमनों से
Wednesday, May 2, 2018
शाखा है गंगा की धारा, डुबकी नित्य लगाते हैं।
शाखा है गंगा की धारा, डुबकी नित्य लगाते हैं।
मां का वंदन सांझ-सवेरे, श्रद्धा-सुमन चढ़ाते हैं।।
संघ-साधना अर्चन-पूजन, प्रतिदिन शीश झुकाते हैं।
भारत मां के भव्य भाल पर भगवा ध्वज लहराते हैं।।
संघस्थान मन्दिर सा पावन, मन दर्पण हो जाते हैं।
शाखा है गंगा की धारा..1
इसकी रज में खेल खेल कर तन चंदन बन जाते हैं।
योग, खेल रवि नमस्कार से
स्वस्थ शरीर बनाते हैं।।
स्नेह भाव से मिलते-जुलते, मन-मत्सर मर जाते हैं।
शाखा है गंगा की धारा...2
लोक संगठन के संवाहक, गटनायक बन जाते हैं।
कुम्भकार की रचना करके, गणशिक्षक कहलाते हैं।।
देशभक्ति का गीत हृदय में, मातृभक्ति पनपाते हैं।
शाखा है गंगा की धारा....3
मधुकर की यह तपः साधना वज्र शक्ति बन जायेगी।
मां बैठगी सिंहासन पर, यश-वैभव को पायेगी।।
केशव-माधव का यह दर्शन, मोह जाल कट जाते हैं।
शाखा है गंगा की धारा..4
Saturday, April 28, 2018
मंत्र छोटा रीत नई आसान हमने पाई है
मंत्र छोटा रीत नई आसान हमने पाई है
छोटे छोटे संस्कारों से बात बडी बन जाती है ॥
बाते करने से क्या होता नियमित होना पडता है
नियमित शाखा जाते जाते अनुशासन फिर आता है
अनुशासन ही संस्कारों का पंथ खुला कर देता है ॥
शाखा मे हम ऐसे खेले जिससे प्रेम उमडता हो
कुछ बौद्धिक हो गीत गान हो धर्म ग्यान की चर्चा हो
भगवा ध्वज हो नित्य सामने त्याग भावना पलती है ॥
सुख दुख मे हम साथ रहें परिवार रहे हर संपर्कित
यह समाज मेरा अपना है प्रेम भावना हो अंकित
गुरु-पूजा हो श्रद्धा से विस्तार तपस्या होती है ॥
वीर सुतों के दिव्य तेज से भू पर तारांगण आए
जगत निरामय करने हेतु सेवा-व्रत हम अपनाए
इसी मंत्र से इसी तंत्र से विश्व धर्म जय होती है ॥
Thursday, February 8, 2018
चलो भाई चलो शाखा मे चलो
चलो भाई चलो शाखा मे चलो
थोडी देर अब तुम सब काम भुलो चलो
भाई चलो संग संग चलो
आज के दिन ज़रा हंसो और खेलो ॥
राम कृष्ण के वारिस हम
गर्व से कहते हिन्दु हम
भग्वा ध्वज है पुज्य परम
वन्दन उसे करो संग संग चलो ॥
जीजा का मातृत्व हमे
शौर्य लक्ष्मी का है तन मे
मौसी जी कि आन हमे
आगे बढो और संग संग चलो ॥
छोटे छोटे बच्चे हम
काम बडा करेंगे हम
धर्म की रक्षा करेंगे हम
कहेंगे वन्दे मातरम ॥
शाखा मे है REAL FUN
कबड्डि खो खो मे रम्ता मन
करो योगा भुलो गम
कदम मिलओ और संग संग चलो ॥
अनेकता में ऐक्य मंत्र को, जन-जन फिर अपनाता है।
अनेकता में ऐक्य मंत्र को,
जन-जन फिर अपनाता है।
धीरे-धीरे देश हमारा,
आगे बढता जाता है।
इस धरती को स्वर्ग बनाया,
ॠषियों ने देकर बलिदान॥
उन्हीं के वंशज आज चले फिर,
करने को इसका निर्माण।
कर्म पंथ पर आज सभी को गीता ग्यान बुलाता है॥1॥
जाति, प्रान्त और वर्ग भेद के,
भ्रम को दूर भगाना है।
भूख, बीमारी और बेकारी, इनको आज मिटाना है।
एक देश का भाव जगा दें, सबकी भारत माता है॥2॥
हमें किसी से बैर नहीं है,
हमें किसी से भीति नहीं।
सभी से मिलकर काम करेंगे,
संगठना की रीति यही।
नील गगन पर भगवा ध्वज यह, लहर लहर लहराता है॥3॥
व्यक्ती व्यक्ती मे जगाये धर्म चेतना
व्यक्ती व्यक्ती मे जगाये धर्म चेतना
जनमन संस्कार करे यही साधना ।
साधना नित्य साधना
साधना अखंड साधना ॥ध्रु॥
नित्य शाखा जान्हवी पुनीत जलधरा
साधना की पुण्यभूमी शक्ती पीठीका
रजः कणों में प्रकटें दिव्य दीप मालीका
हो तपस्वी के समान संघ साधना ॥१॥
हे प्रभो तू विश्व की अजेय शक्ती दे
जगत हो विनम्र ऐसा शील हमको दे
कष्ट से भरा हुआ ये पंथ काटने
ज्ञान दे की हो सरल हमारी साधना ॥२॥
विजयशाली संघबद्ध कार्यशक्ती दे
तीव्र और अखंड ध्येय निष्ठा हमको दे
हिंदु धर्म रक्षणार्थ वीर व्रत स्फ़ुरे
तव कृपा से हो सरल हमारी साधना ॥३॥
आज श्रध्दा सुमन अर्पित कर रहा हर्षित गगन
आज श्रध्दा सुमन अर्पित कर रहा हर्षित गगन
हे परम आराध्य केशव युग पुरूष शत शत नमन ॥धृ॥
दासताँ की शृंखला से बध्द भारत भूमी प्यारी
लुप्त चिति धृती और कृति थी सुप्त थी संस्कृति हमारी
सुप्त हिंदू राष्ट्र को जागृत किया बन रवि किरण ॥१॥
हे परम आरध्य ---
संघटन का मंत्र अभिनव संघ सुरसरी को बहाकर
कोटी युवकों के हृदय में राष्ट्र भक्ती को जगाकर
कर दिया अर्पित स्वयम् को मातृ चरणों में मगन ॥२॥
हे परम आरध्य ---
आपका वह धन्य जीवन प्रेरणा है बन गयी
कोटी युवकों के लिये साधना है बन गयी
मातृभू पर हो समर्पित एक है बस यह रटन ॥३॥
हे परम आरध्य ---
हर नगर हर ग्राम में नव चेतना का दीप जलता
हर हृदय को कर प्रकाषित संघटन का राग भरता
हो रही साकार है वह कल्पना साक्षी गगन ॥४॥
हे परम आरध्य---
अभिनंदन हे मौन तपस्वी धीरोदात्त पुजारी
अभिनंदन हे! मौन तपस्वी
अभिनंदन हे! मौन तपस्वी धीरोदात्त पुजारी!
तुम्हें जन्म दे धन्य हुई मां भारत भूमि हमारी!!
नव जीवन भर कर कण-कण में, बहा प्रेम रस धारा,
अमित राग मन में भर केशव साथर्क नाम तुम्हारा!
फिर बसंत की फूल रही है, आशा की फूलवारी………… १
आज जागरण का स्वर लेकर मलियानिल के झोंके
प्रेम हृदय में भरते जाते कोटी कोटी सुमनों के
नव प्रभात हो रहा चतुदिर्क फैली फिर उजियारा ……!! ? !!
प्राची का मुख भी उज्ज्वल है केशव किरणें फैली
चला अंधेरा ले समेट कर अपनी चादर मैली
अंधकार अज्ञान ही त्यागी मिटी कालिमा सारी …………।। २
देव तुम्हारी पुण्य स्मृति में रोम रोम हषिर्त है
देव तुम्हारे पद पदमों पर श्रध्दांजलि अपिर्त है
केशव बन ध्रुव ज्योति दिखा दो जन मानस भवहारी…… ३
आज तन मन और जीवन धन सभी कुछ हो समपर्ण
आज तन मन और जीवन
धन सभी कुछ हो समपर्ण
राष्ट्र्हित की साधना में, हम करें सर्वस्व अपर्ण………………।…।धृ
त्यागकर हम शेष जीवनकी, सुसंचित कामनायें
ध्येय के अनुरूप जीवन, हम सभी अपना बनायें
पूणर् विकसित शुध्द जीवन-पुष्प से हो राष्ट्र् अर्चन……।। १
यज्ञ हित हो पूणर् आहुति, व्यक्तिगत संसार स्वाहा
देश के कल्याण में हो, अतुल धन भंडार स्वाहा
कर सके विचलित न किंचित मोहके ये कठिन बंधन……………। २
हो रहा आह्वान तो फिर, कौन असमंजस हमें है
ऊच्यतर आदशर् पावन प्राप्त युग युग से हमें है
हम ग्रहण कर लें पुन: वह त्यागमय परिपूणर् जीवन………।……३
बनें हम धर्मके योगी, धरेंगे ध्यान संस्कृति का
बनें हम धर्मके योगी, धरेंगे ध्यान संस्कृति का
उठाकर धर्मका झंडा, करेंगे उत्थान संस्कृति का ।। धृ ||
गलेमें शीलकी माला, पहनकर ज्ञानकी कफनी
पकडकर त्यागका झंडा, रखेंगे मान संस्कृति का ||१||
जलकर कष्टकी होली, ऊठाकर ईष्तकी झोली
जमाकर संतकी टोली, करें ऊत्थान संस्कृति का ||२||
हमारे जन्मका सार्थक, हमारे मोक्षका साधन
हमारे स्वर्गका साधन, करें ऊत्थान संस्कृति का ||3||
हम करें राष्ट आराधना तन से मन से धन से
हम करें राष्ट आराधना
तन से मन से धन से
तन मन धन जीवनसे
हम करें राष्ट आराधना………………।।…धृ
अन्तर से मुख से कृती से
निश्र्चल हो निर्मल मति से
श्रध्धा से मस्तक नत से
हम करें राष्ट अभिवादन…………………। १
अपने हंसते शैशव से
अपने खिलते यौवन से
प्रौढता पूर्ण जीवन से
हम करें राष्ट का अर्चन……………………।२
अपने अतीत को पढकर
अपना ईतिहास उलटकर
अपना भवितव्य समझकर
हम करें राष्ट का चिंतन…।………………।३
है याद हमें युग युग की जलती अनेक घटनायें
जो मां के सेवा पथ पर आई बनकर विपदायें
हमने अभिषेक किया था जननी का अरिशोणित से
हमने शृंगार किया था माता का अरिमुंडो से
हमने ही ऊसे दिया था सांस्कृतिक उच्च सिंहासन
मां जिस पर बैठी सुख से करती थी जग का शासन
अब काल चक्र की गति से वह टूट गया सिंहासन
अपना तन मन धन देकर हम करें पुन: संस्थापन………………।४
જય મહા મંગલે જય સદા વત્સલે
જય મહા મંગલે જય સદા વત્સલે
સાગર વલયાંકિતે નગાધિરાજ શોભિતે
તુજ સમાન વિશ્વ મહી પુણ્ય ભૂમી કોઈ ના
ઋષિ મુનિગણ દેવ તણિ જન્મ ભુમી વંદના ...૧
તવ પુત્રે પ્રથમ દિને બીજ મંત્ર ગાન કર્યું
ગંગા સિંધુ તીરે થી અમૃતમય જ્ઞાન વહ્યું
તિમિર મુક્ત વિશ્વ કરે માતેશ્વરી અર્ચના ...૨
પાવન પયપાન કરી તવ પુત્રો સિદ્ધ થયા
માનવત્વ રક્ષણાર્થ ત્યાગી સર્વસ્વ રહ્યા
રન્તિદેવ શિબિ દધીચી તવ ઉર ની સર્જના ...૩
પ્રાચીન સંસ્કાર ધાર અવિરત અક્ષુણ્ણ હો
માતૃ ભૂમી વિશ્વ તની પાવન ઉદ્ધારક હો
શુભ કાર્યે શીશ ચઢે એકમેવ ઝંખના ...૪
છીયે અમેતો છોટાજી પણ વિચારો મોટાજી
છીયે અમેતો છોટાજી પણ વિચારો મોટાજી
બાલુડાની ફોજ રચીશું અમે બનીશું નેતાજી ||
સાથે રમીયે સાથે જમીયે નિતનિત મંગલ કામોં કરીયે
રામકૃષ્ણનો નામ સ્મરીયે ( ગાતા ગાતા હરતા ફરતા ) દ્વિ ૨
સંસ્કારોંની વાત કરીયે ... છીયે અમેતો ||१||
નિત્ય સમયસર શાખા જાઇયે ભગવા ધ્વજને વંદન કરીયે
તનમન બુદ્ધી સ્વસ્તજ કરીયે (હસતા હસતા રમતા રમતા) દ્વિ
હિંદુ ધર્મ નુ કામ કરીયે ... છીયે અમેતો ||२||
પલપલ સારું વર્તન કરીયે સંસ્કૃતી નુ સંવર્ધન કરિયે
સ્વધર્મ વ્રત નુ પાલન કરીયે (ગલીયે ગલીયે ગ્રામે ગ્રામે) દ્વિ
જાગૃતી નુ જન ઘોષ કરીયે ...છીયે અમેતો ||૩||
ભારત ભૂમિ રે મારી તીરથ ભૂમ
ભારત ભૂમિ રે મારી તીરથ ભૂમિ ને એની રિદ્ધિ સિદ્ધિ નો નહિ પાર રે,
ધન્ય મારી ભારત ભૂમિ....
ભારત ભૂમિ રે મારી તીરથ ભૂમિ ને એની રિદ્ધિ સિદ્ધિ નો નહિ પાર રે,
ધન્ય મારી ભારત ભૂમિ....
માથે મુકુટતો હાવળોને કાંઈ કાશ્મીર મહા-મૂલ્યવાન રે,
ધન્ય મારી ભારત ભૂમિ....
કેડે વિંધ્યાચલ તો હતો ને માનો પાલવડો ગુજરાત રે,
ધન્ય મારી ભારત ભૂમિ....
ભારત ભૂમિ રે મારી તીરથ ભૂમિ ને એની રિદ્ધિ સિદ્ધિ નો નહિ પાર રે,
ધન્ય મારી ભારત ભૂમિ....
સાગર પખાળે માના ચરણોને, વહે ગંગા-જમનાજીના નીર રે,
ધન્ય મારી ભારત ભૂમિ....
પૂર્વે જગ્ગનાથ જાગતા ને ઉભા પશ્ચિમે દ્વારકાનાથ રે,
ધન્ય મારી ભારત ભૂમિ....
ભારત ભૂમિ રે મારી તીરથ ભૂમિ ને એની રિદ્ધિ સિદ્ધિ નો નહિ પાર રે,
ધન્ય મારી ભારત ભૂમિ....
બદ્રી-કેદાર છે ઉત્તરે ને એની દક્ષિણે રામેશ્વર ધામ રે,
ધન્ય મારી ભારત ભૂમિ....
શિવા-પ્રતાપ જેવા વિરલા કે જેણે હિંદુ બલિદાનીના કામ રે,
ધન્ય મારી ભારત ભૂમિ....
ભારત ભૂમિ રે મારી તીરથ ભૂમિ ને એની રિદ્ધિ સિદ્ધિ નો નહિ પાર રે,
ધન્ય મારી ભારત ભૂમિ....
કેશવ-માધવ જેની કુખે જન્મ્યા કે જેણે સંઘના પાયા અહીં રોપ્યા રે,
ધન્ય મારી ભારત ભૂમિ....
હિંદુ દીયો હવે ચાંપ્યો અને કીધો માતાનો જય-જયકાર રે,
ધન્ય મારી ભારત ભૂમિ....
ભારત ભૂમિ રે મારી તીરથ ભૂમિ ને એની રિદ્ધિ સિદ્ધિ નો નહિ પાર રે,
ધન્ય મારી ભારત ભૂમિ....
ભારત ભૂમિ રે મારી તીરથ ભૂમિ ને એની રિદ્ધિ સિદ્ધિ નો નહિ પાર રે,
ધન્ય મારી ભારત ભૂમિ....
ભારત ભૂમિ રે મારી તીરથ ભૂમિ ને એની રિદ્ધિ સિદ્ધિ નો નહિ પાર રે,
ધન્ય મારી ભારત ભૂમિ....
ભારત ભૂમિ રે મારી તીરથ ભૂમિ ને એની રિદ્ધિ સિદ્ધિ નો નહિ પાર રે,
ધન્ય મારી ભારત ભૂમિ....
ભારત ભૂમિ રે મારી તીરથ ભૂમિ ને એની રિદ્ધિ સિદ્ધિ નો નહિ પાર રે,
ધન્ય મારી ભારત ભૂમિ....
ભારત ભૂમિ રે મારી તીરથ ભૂમિ ને એની રિદ્ધિ સિદ્ધિ નો નહિ પાર રે,
ધન્ય મારી ભારત ભૂમિ....
ભારત ભૂમિ રે મારી તીરથ ભૂમિ ને એની રિદ્ધિ સિદ્ધિ નો નહિ પાર રે,
ધન્ય મારી ભારત ભૂમિ....
રાષ્ટ્રની જય ચેતનાનુ ગાન વંદે માતરમ્
વંદે માતરમ્ ! વંદે માતરમ્ ! વંદે માતરમ્ !
રાષ્ટ્રની જય ચેતનાનુ ગાન વંદે માતરમ્
રાષ્ટ્રભક્તી પ્રેરણાનુ ગાન વંદે માતરમ્ ..ધ્રુ..
વંશીના વેહતા સ્વરૉનો પ્રાણ વંદે માતરમ્
ઝલ્લરી ઝનકાર ઝનકે નાદ વંદે માતરમ્
શંખનો સંઘોષ ચહુદિશ નાદ વંદે માતરમ્ ..1...
સ્રુષ્ટીના બિજમંત્રનો છે મર્મ વંદે માતરમ્
રામ ના વનવાસ કેરુ કાવ્ય વંદે માતરમ્
દિવ્ય ગીતા જ્ઞાનનો આધાર વંદે માતરમ્ ..2...
હલ્દિઘાટીના કણોમા વ્યાપ્ત વંદે માતરમ્
દિવ્ય જોહર જ્વાલનુ છે તેજ વંદે માતરમ્
વીરોના બલિદાન નો સિંહનાદ વંદે માતરમ્ ..3...
કરશુ પાદાક્રાન્ત ધરતી ગર્જન વંદે માતરમ્
અરિદલ થરથર કંપે સૂની નાદ વંદે માતરમ્
વીર પુત્રોનો અમર લલકાર વંદે માતરમ્ ..4..
संघटन गढे चलो सुपंथ पर बढे चलो
संघटन गढे चलो सुपंथ पर बढे चलो ।
भला हो जिसमें देश का वो काम सब कीये चलो ॥धृ॥
युग के साथ मिलके सब कदम बढान सीख लो ।
एकता के स्वर में गीत गुनगुनाना सीख लो
भूल कर भी मुख में जाती-पंथ की न बात हो
भाषा प्रांत के लिये कभी न रक्त पात हो
फूट का भरा घडा है फोड कर बढे चलो॥१॥
आरही है आज चारों ओर से यही पुकार
हम करेंगे त्याग मातृभूमी के लिये अपार
कष्ट जो मिलेंगे मुस्कुराते सब सहेंगे हम
देश के लिये सद जियेंगे और् मरेंगे हम
देश का हि भग्य अपन भग्य है ये सोच लो ॥२॥